भारत की हर वक्त अपने अदम्य साहस का परिचय देती आई है। ऐसी ही एक महिला थीं निरजा भानोट जिन्होंने एक आम महिला होते हुए भी हथियारबंद आतंकियों के सामने घुटने नहीं टेके। उन्होंने अपने पैसेंजर्स की सुरक्षा सुनिश्चित की।
साल 1986 में एक भारतीय फ्लाइट हाइजैक हुई थी, तब नीरजा भनोट ने फ्लाइट सीनियर अटेंडेंट के रूप में आतंकियों का सामना किया और खुद की जान की परवाह किए बिना प्लेन में बैठे 360 लोगों की जान बचाई।
निरजा भानोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। निरजा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चंडीगढ़ में ही प्राप्त की।
वे काफी खुले विचारों वाली थीं, इस वजह से ही महज 17 साल की उम्र में उन्होंने अपना करियर मॉडलिंग में बनाने का निर्णय लिया। लेकिन साल 1985 में नीरजा की शादी करा दी गई। पति संग रिश्ते अच्छे न होने के कारण महज 2 महीने के अंदर ही उन्होंने इस रिश्ते को खत्म कर दिया। और फिर शुरू हुआ नीरजा का सपना पूरा करने का सफर। नीरजा ने मॉडलिंग शुरूकर दी और करीब 22 एडवरटाइजमेंट्स में काम किया।इसके बाद उन्होंने पैन एम में विमान परिचारिका की नौकरी के लिये आवेदन किया और चुने जाने के बाद मियामी में ट्रेनिंग के लिए गईं।
अपने जन्मदिन से दो दिन पहले साल 1987 में नीरजा मुंबई से अमेरिका जाने वाली फ्लाइट पैन ऍम-73 में बतौर सीनियर अटेंडेंट शामिल थीं। लेकिन प्लेन को कराची में चार आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया और सारे यात्रियों को बंधक बना लिया। प्लेन में मौजूद सभी यात्रियों को गन प्वाइंट पर ले लिया गया था। लेकिन फ्लाइट अटेंडेंट नीरजा भनोट ने अपनी सूझबूझ से उनका सामना किया।जब सरकार के साथ उनका नेगोशिएशन नहीं हो पा रहा था तो 17 घंटों के बाद आतंकवादियों ने यात्रियों की हत्या शुरू कर दी और विमान में विस्फोटक लगाने शुरू किये तब नीरजा विमान का इमरजेंसी दरवाजा खोलने में कामयाब हुईं और उन्होंने सभी यात्रियों को सुरक्षित कर लिया। वे चाहतीं तो दरवाजा खुलने के बाद पहले कूदकर निकल सकती थीं मगर उन्होंने ऐसा न कर पहले यात्रियों को निकाला। इसी प्रयास में तीन बच्चों को निकालते हुए जब एक आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी चाही तो नीरजा बीच में आ गईं। इस दौरान आतंकवादी की गोलियों की बौछार से नीरजा की मृत्यु हुई।
नीरजा को भारत सरकार ने इस अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है।अपनी वीरगति के समय नीरजा भनोत की उम्र 23 साल थी। यह सम्मान पाने वाली नीरजा भनोट पहली महिला और सबसे कम आयु की नागरिक भी हैं। इसके साथ ही पाकिस्तान सरकार की ओर से उन्हें तमगा-ए-इन्सानियत से नवाज़ा गया।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम हीरोइन ऑफ हाईजैक के तौर पर जानी जाती है।
निरजा भानोट का जीवन एक प्रेरणा है। उनके बहादुरी, त्याग और अदम्य साहस ने देश भर में लाखों लोगों को प्रभावित किया है। निरजा भानोट की विरासत हमेशा प्रासंगिक रहेगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।