भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का विवाद एक ऐसा मुद्दा है जो दशकों से दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। इस विवाद की जड़ें भारत के विभाजन और उस समय के घटनाक्रम में पड़ी हैं।
1947 में मिली आजादी से पहले कश्मीर अलग रियासत हुआ करता था। जिस पर डोगरा राजपूत वंश के राजा हरि सिंह का शासन था। उन्होंने पूरी रियासत को एक करने के लिए पहले लद्दाख को जीता था। जिसके बाद 1840 में अंग्रेजों से कश्मीर को लिया। उस समय यहां की सीमाएं अफगानिस्तान और चीन से लगती थी, यही वजह है कि कश्मीर रणनीतिक तौर पर बेहद अहम था। 1947 में, जब अंग्रेज भारत छोड़कर गए तो वो अपना जहर यहां छोड़ गए जिस कारण भारत का विभाजन हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र देश बन गए। विभाजन के दौरान, कश्मीर का मुद्दा भी उठा, क्योंकि इस क्षेत्र में मुस्लिम और हिंदू दोनों ही आबादी थी, तो ये बहस छिड़ी कि कश्मीर किसके पास जायेगा।
उस समय कश्मीर के राजा हरि सिंह थे, शुरू में भारत में शामिल होने का फैसला किया, लेकिन पाकिस्तान ने इस फैसले का विरोध किया। पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। जब कबायलियों की फौज श्रीनगर की ओर बढ़ी तो उन्होंने हिंदुओं की हत्या की और उनके साथ लूटपाट की ये सब सुनने के बाद राजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1948 को भारत में विलय के लिए संधि पत्र पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्तान की सेना ने कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र से मदद मांगी, और संयुक्त राष्ट्र ने एक युद्धविराम कराने के लिए कदम उठाए।
संयुक्त राष्ट्र ने कई प्रस्ताव पारित किए, जिनमें कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का प्रस्ताव शामिल था। हालांकि, भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने इन प्रस्तावों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया।
संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बावजूद, भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर के कुछ हिस्सों पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। भारत ने कश्मीर के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण कर लिया, जबकि पाकिस्तान ने कश्मीर के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों पर कब्जा कर लिया।
नेशनल कानफ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला उस समय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के मित्र थे। आजादी के बाद नेहरू ने उन्हें कश्मीर की कमान सौंपी। और शेख ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए पंडित नेहरू को मनाया। जिसके बाद आया अनुच्छेद 370 और कश्मीर को मिला विशेष दर्जा।
कश्मीर का विवाद आज भी जारी है। भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने कश्मीर को अपना अभिन्न अंग घोषित किया है। दोनों देशों के बीच कई बार युद्ध और संघर्ष हुए हैं, जिससे क्षेत्र में तनाव और अस्थिरता बढ़ती रही है।
साल 2019 में पीएम मोदी सरकार ने कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करते हुए अलगाववादियों और कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए। कश्मीर में जारी पाकिस्तान से होने वाली फंडिंग पर रोक लगाई गई। जम्मू-कश्मीर में निवेश बढ़ा और पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी।
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव आज से शुरू हो चुके हैं। इससे पहले जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव आखिरी बार दस साल पहले 2014 में हुए थे। जिसमें किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिली थी। इसके बाद पीडीपी-भाजपा ने गठबंधन कर प्रदेश सरकार बनाई। 2018 में भाजपा के समर्थन वापस ले लेने से ये सरकार गिर गई थी और तब से ही जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार नहीं है।
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का विवाद एक जटिल और विवादित मुद्दा है। भारत के विभाजन और पाकिस्तान के आक्रमण ने इस विवाद की जड़ें जमा दी हैं। आज भी, दोनों देशों के बीच कश्मीर पर तनाव जारी है, और इसका समाधान एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय चुनौती बना हुआ है।