महाकाल की नगरी उज्जैन में, सुबह होते ही हजारों भक्त महाकालेश्वर मंदिर की ओर बढ़ने लगते हैं और जय महाकाल के गुण गाते हुए भक्ति भाव से रंग-बिरंगे फूल अपने राजा को भेंट स्वरूप चढ़ाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर भक्ति से भरपूर इन फूलों का बाद में होता क्या है…. ये फूल अक्सर बेढंगी तरह से नदियों में बहा दिए जाते हैं या तो इन्हें लैंडफिल में फेंक दिया जाता हैं। कई लोग सोचते हैं कि कुछ फूल ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, मगर फूल डॉट कॉम के शोध इसकी एक अलग तस्वीर पेश करते हैं। उनके शोध के मुताबिक “जब कोई व्यक्ति नदी में फूल फेंकता है, तो वह सोचता है, ‘मुट्ठी भर फूल क्या नुकसान पहुंचा सकते हैं?’ लेकिन हम एक अरब से ज़्यादा लोगों का देश हैं, इसलिए इसके असर की कल्पना करें।” ये शोध स्वच्छ भारत मिशन की 10वीं वर्षगांठ के अवसर पर शुरू किए गए स्वभाव स्वच्छता संस्कार स्वच्छता (4एस) अभियान के मिशन को भी प्रमोट करते हैं।
17 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2024 तक चलने वाला यह अभियान महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत दिवस के लिए वार्षिक स्वच्छता ही सेवा परंपरा के साथ जुड़ा हुआ है। भारत भर के मंदिरों से फूलों के कचरे को रिसाइकिल करने पर ध्यान केंद्रित करके, ये अभियान स्थिरता को अपनाता है, जो फेंके गए फूलों को मूल्यवान संसाधनों में बदल देता है।
उज्जैन की बात करें तो, महालकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन 75,000 से 100,000 तक श्रद्धालु आते हैं और यह प्रतिदिन 5-6 टन फूलों के वेस्ट को उत्पन्न करता है। इससे निपटने के लिए मंदिर ने ‘पुष्पांजलि इकोनर्मिट’ वाहन शुरू किए हैं, जो फ्लोरल वेस्ट को इकट्ठा करते हैं और 3 टन प्रतिदिन प्रोसेसिंग प्लांट में ले जाते हैं। इस वेस्ट को खाद, ब्रिकेट और बायो फ्यूल जैसे बायो प्रोडक्ट्स में बदल दिया जाता है। यहां एक समूह की महिलाओं ने 30 मिलियन से अधिक अगरबत्ती और अन्य पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं को तैयार करके इसका बीड़ा उठाया है। उनके प्रयासों ने न केवल मंदिर के वातावरण को शुद्ध करने में मदद की है, बल्कि कई लोगों के लिए स्थिर रोजगार के अवसर भी प्रदान किए हैं।
मुंबई में सिद्धिविनायक मंदिर को भी इसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यहां रोजाना 40,000 से 100,000 श्रद्धालु आते हैं। यहां प्रतिदिन 120 से 200 किलोग्राम तक पुष्प चढ़ाए जाते हैं, जिसने एक स्थायी डिजाइन हाउस ‘आदिव प्योर नेचर’ को मंदिर के साथ सहयोग करने के लिए प्रेरित किया। वे सप्ताह में तीन बार वेस्ट को इकट्ठा करते हैं और इसे स्कार्फ, परिधान और लिनेन जैसे वस्त्रों के लिए प्राकृतिक रंगों में बदलते हैं। गेंदे से लेकर नारियल के छिलकों तक कई तरह की सामग्रियों का उपयोग करते हुए यह मंदिर के वेस्ट को इनोवेटिव तरह से नया रूप देते है। कानपुर स्थित फूल डॉट को, जो मंदिर वेस्ट रीसाइक्लिंग क्षेत्र में आगे है, अयोध्या, वाराणसी, बोधगया और बद्रीनाथ जैसे प्रमुख शहरों से हर हफ्ते लगभग 21 टन पुष्प वेस्ट इकट्ठा करता है। कंपनी इस कचरे को धूपबत्ती उत्पादों में बदल देती है और इसने चमड़े का एक अभिनव विकल्प, ‘फ्लेदर’ भी विकसित किया है, जिसने पेटा के सर्वश्रेष्ठ नवाचार पुरस्कार जैसे पुरस्कार अर्जित किए हैं। फूल के संचालन न केवल कचरे से लड़ते हैं बल्कि महिलाओं को सुरक्षित आजीविका भी प्रदान करते हैं, जिन्हें स्वास्थ्य सेवा, परिवहन और भविष्य निधि जैसे लाभ मिलते हैं।