टाटा से लेकर गोदरेज और वाडिया ने भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में काफ़ी बड़ा योगदान दिया है। मगर क्या आप जानते हैं कि ये सारे सरनेम पारसी धर्म के हैं ।
तो आइए आपको बताते हैं कि आखिर ये धर्म भारत में कब और कैसे पनपा।
पारसी धर्म विश्व का अत्यन्त प्राचीन धर्म है। जिसकी स्थापना सन्त ज़रथुष्ट्र ने की थी।इस्लाम के आने के पूर्व प्राचीन ईरान में इस धर्म का ही प्रचलन था। सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को हरा दिया। तब वहाँ के ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों ने इस्लाम की भाईचारा निति और रहन सहन को देखते हुए इस्लाम कुबूल कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आये और यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये।
कहा जाता है कि अत्याचार से त्रस्त होकर पारसियों का पहला समूह भारत के दीव पहुंचा जिसके बाद वे गुजरात में बस गए। पारसी 9वीं-10वीं सदी में भारत आए, ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण हैं।
गुजरात के एक स्थानीय शासक ने दी थी शरण
पारसी शब्द पर्शिया से निकला है। पर्शिया यानी आज का ईरान। और पारसी यानी पर्शिया के लोग। 641 तक पर्शिया में जोरोस्ट्रियन धर्म के लोग बहुसंख्यक हुआ करते थे। ठीक इसी समय पर अरबों ने अपना साम्राज्य फैलाना शुरू किया और इस क्रम में वो पर्शिया पहुंचे। पर्शिया पर सैसानी वंश का शासन था। अरबों से युद्ध में पर्शिया के शासक यज़्देगर्द शहरियार की हार हुई। धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए जोरोस्ट्रियन लोगों ने पर्शिया से पलायन शुरू कर दिया।ये पलायन अगली कई सदियों तक चला।
गुजरात के एक स्थानीय शासक, जिनका नाम जदी राणा था, वे इन पारसियों को अपने राज्य में शरण देने के लिए तैयार हुए मगर चार शर्तों के साथ।
भारत में इस धर्म के लोगों की संख्या लगभग एक लाख
पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी करीबन 1,00,000 से अधिक नहीं है। ईरान में कुछ हजार पारसियों को छोड़कर लगभग सभी पारसी अब भारत में ही रहते हैं और उनमें से भी अधिकांश अब मुंबई में हैं।आज के समय में भारत में इस धर्म के लोगों की संख्या लगभग एक लाख है, जिसका 70% मुम्बई में रहते हैं।पारसियों ने भी खुलकर भारत की सेवा की और भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन, अर्थव्यवस्था, मनोरंजन, सशस्त्र सेनाओं तथा अन्यान्य क्षेत्रों में सर्वत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया।पहले पारसी लोग कृषि में व बाद में व्यापार व उद्योग में लगे। भारतीय जहाज निर्माण को इन्होंने पुनःजीवित कर योरपियों से भारत को सौंपा। पारसियों द्वारा निर्मित जहाज ब्रिटिश नौसेना खरीदती थी ।
इन पारसियों ने दिलाई भारत को पहचान
पारसी ब्रदर्स अर्देशिर गोदरेज और उनके भाई फिरोजशाह बुरजोरजी ने देश में गोदरेज ब्रदर्स कंपनी की स्थापना की, जिसके बाद ये गोदरेज ग्रुप के नाम से जाना गया।
टाटा ग्रुप की कंपनियों की स्थापना जमशेदजी टाटा ने की थी, जो आज पूरी दुनिया में याद किए जाते हैं।
देश के न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक कहे जाने वाले होमी जहांगीर भाभा भी पारसी थे।
भारत के अर्थशास्त्री और राजनीतिक कार्यकर्ता माने जाने वाले दादाभाई नौरोजी का भी संबंध पारसी समाज से था। वो ब्रिटेन से आज़ादी की मांग करने वाले पहले व्यक्ति थे।
टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनियों के पूर्व अध्यक्ष रहे रतन टाटा भी पारसी थे।
भारतीय अरबपति और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के संस्थापक साइरस पूनावाला भी पारसी है।