दिल में जुनून हो तो मुश्किलों का पहाड़ भी छोटा नजर आता है। ऐसा ही उदाहरण है भारतीय पैरालंपिक खिलाड़ी नितेश कुमार का। जिन्होंने अपने असाधारण खेल कौशल और दृढ़ संकल्प के साथ दुनिया भर में प्रशंसा और सम्मान हासिल किया है। एक पैर ना होने के बावजूद, उन्होंने अपने जीवन को रुकने नहीं दिया और एक बेहतरीन एथलीट के रूप में उभरे। नितेश कुमार ने न केवल भारत के लिए गौरव बढ़ाया है, बल्कि विकलांगता के प्रति समाज के नजरिए को बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दुर्घटना में गंवाया अपना पैर फिर भी नहीं टूटा हौसला
नितेश कुमार का जन्म 30 दिसंबर 1994 को राजस्थान के बास कीर्तन में हुआ था। 2009 में, उन्होंने आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में अपना बायां पैर गंवा दिया था। कई महीनों तक बिस्तर पर रहने के बाद, उन्होंने आईआईटी एंट्रेंस की तैयारी की और 2014 में उन्होंने आईआईटी, मंडी में दाखिला लिया। उन्होंने आईआईटी में बैडमिंटन खेलना शुरू किया और 2016 में पैरा नेशनल चैंपियनशिप में हरियाणा टीम का नेतृत्व किया। वह हरियाणा के करनाल में रहते हैं । पैर ना होने के कारण उनका आत्मविश्वास कम नहीं हुआ।
नितेश कुमार ने कई पदकों को किया अपने नाम
नितेश कुमार ने पैरालंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और कई पदक जीते हैं। उन्होंने 2024 पेरिस पैरालिंपिक में पुरुष एकल एसएल3 कैटेगरी में स्वर्ण पदक जीता। वह विश्व चैंपियनशिप में दो बार रजत और एक बार कांस्य पदक जीत चुके हैं। कुमार ने पिछले कुछ सालों में एशियाई पैरा खेलों में एक स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक जीते हैं।
इन उपलब्धियों के साथ-साथ, नितेश कुमार ने कई अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी सफलता हासिल की है।
विकलांगता के प्रति समाज का नजरिया बदलना
नितेश ने साबित किया है कि विकलांगता किसी भी व्यक्ति की क्षमता को सीमित नहीं करती है। उनके जीवन ने कई लोगों को प्रेरित किया है और उन्हें दिखाया है कि दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के साथ कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।