उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी कानपुर कई चीज़ों के लिए मशहूर है….चाहे वो शहर के लोगों के बोलने का ढंग हो, रास्ते पर दिखने वाला भौकाल या यहां का व्यापार। व्यापार की बात करें तो कानपुर को भारत की लेदर कैपिटल भी कहा जाता है। शहर में गंगा किनारे बसे जाजमऊ इलाके में मुख्य रूप से चमड़े का उत्पादन होता है। इस एरिया में 10 -15 कि.मी. के दायरे में अगर आप घूमने जाएंगे तो आपको यहां गंगा की सुंदरता का आनंद तो बिलकुल नहीं ले पाएंगे आपको अपनी नाक बंद करनी पड़ेगी। यहाँ गंगा किनारे सैंकड़ों भट्टियां धधक रही होती हैं, जिनमें जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस चर्बी काइस्तेमाल कहां किया जाता है। दरअसल इस गली हुई चर्बी का इस्तेमाल एनामिल पेंट बनाने में किया जाता है जिसे हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं। साथ ही इसका यूज़ ग्लू या फेविकोल बनाने में किया जाता है।मगर इससे जो सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती हैं वह है “देशी घी” जी हाँ “शुध्द देशी घी”।
चर्बी वाले घी को बाज़ार में बेफिक्र बेचा जाता है
यहां अवैध ग्लू भट्ठियों से निकलने वाली चर्बी से बन रहे देशी घी के तार यूपी समेत आस-पास के राज्यों से भी जुड़े हुए है। पुलिस, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और खाद्य विभाग के अधिकारी कई बार एक्शन लेते हैं मगर ये दोबारा शुरू हो जाती हैं।
यही देशी घी शहर की थोक मण्डियों में 120 से 150 रूपए प्रति किलो तक बिकता है। सबसे हैरान करने वाली बात तो ये है कि इस मिलावटी घी को भगवान को भोग स्वरूप चढ़ाते हैं और इसे बोलचाल की भाषा में “पूजा वाला घी” कहकर बुलाते हैं। इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल भण्डारे करने वाले करते हैं।
किन चीजों से तैयार होता है ये पूजा वाला घी
एक किलो चर्बी वाले नकली देशी घी को तैयार करने लिए 500 ग्राम चर्बी, 300 ग्राम रिफाइंड, 200 ग्राम शुद्ध देशी घी और 100 ग्राम एसेंस को एक साथ मिक्स किया जाता है। इसके बाद इस चर्बी वाले नकली मिलावटी घी को ब्रांडेड कंपनियों वाले डिब्बे में भरकर बाजार में बेचने के लिए निकाला जाता है। इस तथाकथित शुद्ध देशी घी की सप्लाई यूपी समेत बिहार, गुजरात और राजधानी तक में भी हो रही है।
महज़ 250 रूपये में बनता है ये घी
लंबे प्रॉफिट के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के दुकानदार इस घी को सबसे ज्यादा बेचते है, और साथ ही बेकरियों में इसी घी का प्रयोग किया जा रहा है। इसकी कीमत लगभग 250 रुपये प्रतिकिलो तक होती है। इस पूजा वाले घी का इस्तेमाल लोग व्रत उपवास में भी कर ही लेते हैं…और विवाह आदि जैसे कार्यों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसे खाने वाले जाने अनजाने में ना जाने कितनी अशुद्धता अपने शरीर में भर रहे है।
प्रशासन की तरफ से इस गोरखधंधे को रोकने के लिए कई प्रयास हुए.. मगर हाथ लगी तो बस असफलता।तो अगर आप भी ये वाला देशी घी खाते है तो बंद कर दें क्योंकि अगर आप ये खाकर बीमार हुए तो दवा भी मिलावटी है असर नहीं करेगी.